भारतमाता ग्रामवासिनी है। भारत की 85 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है । अतः भारत के गांव भारत की आत्मा हैं । भारतीय जीवन के दर्पण हैं । भारत की संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं। भारतीय गाँव प्रकृति का वरदान हैं। ये गाँव प्राकृतिक सुषमा के घर हैं। यहां के निवासियों ने समय-समय पर विदेशी आक्रान्ताओं से लोहा लिया है। अपने हल की नोक से जमीन को शस्यश्यामला बनाकर सबका पेट भरा है। मैं एक ऐसे ढाण्डा क्षत्रियों द्वारा आवासित गांव का इतिवृत्त प्रस्तुत कर रहा हॅू। जिसने अनेक शताब्दियां देखी हैं। अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं । जो अति प्राचीन गांव है।
गाँव की भौगोलिक स्थिति-
गाँव वराह कलां जिला जीन्द मुख्यालय से लगभग 15 कि०मी० पूर्व दिशा में स्थित है। यह जीन्द - पानीपत सड़क मार्ग गांव मनोहरपुर से पहुंच सड़क से 3 कि0मी0 की दूरी पर अवस्थित है। सामाजिक संरचना के हिसाब से यह गाँव वराह खाप का प्रमुख गांव है तथा यहां वराह खाप का मुख्यालय भी है। वर्तमान में जिसके खाप प्रधानाध्यक्ष लेखक श्री कुलदीप सिंह ढाण्डा हैं।
हरियाणा प्रदेश का जयन्त भू-भाग का यह वराह कलाँ गाँव महाभारतकालीन दृष्टिगोचर होता है। भारतीय संस्कृति में जहां खेड़ों का महत्त्व है वहां पूजा स्थलों का अस्तित्व भी कम नहीं है । भारतीय गाँवों में गांव दर गांव खेड़े स्थापित किये गए हैं। जहां महान आत्माओं के पूजा स्थल प्राचीनता समेटे हुए हैं। मान्यता है कि जब - 2 धर्म की हानि होती है तब - 2 परम पिता परमात्मा किसी दैवीय शक्ति को अवतरित करके अधर्म और अन्याय को समाप्त करते हैं। इसी सन्दर्भ में श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण जी महाराज अर्जुन से कहते हैं कि:-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
अर्थात् हे भारत! जब - 2 धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब - 2 ही मैं अपने रूप को रचता हूँ । अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।
किंवदन्ती है कि ऐसी ही महान आत्मा वराह जी असुर शक्ति हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए इसी स्थल पर अवतरित हुए थे। जिसके कारण यहां के वराह तीर्थ स्थल की अत्यधिक मान्यता है । इस गांव में वराह तीर्थ व वराह मन्दिर का होना पुष्ट प्रमाण है ।
प्राचीन काल में राजा उत्तानपाद ने इसी स्थल पर अपनी राजधानी बनाई थी जो काल - कवलित ध्वंसावशेष है। राजा उत्तानपाद के दोनों पुत्रों धर्म व उत्तम का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था । यहीं पर नाग कुण्ड, नन्द कुण्ड, सूरजकुण्ड व चन्द्रकुण्ड बने हुए हैं। जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत कालीन यह गाँव आक्रान्ताओं के कारण कई बार उजड़ा व आबाद हुआ है। अन्तिम बार जब यह गाँव आबाद हुआ तो बहि भाट रामनरेश कौशिक का कथन है कि उज्जैन से चलकर कुछ पंवार गोत्रीय राजपूत दिल्ली से होते हुए गाँव में उजाड़ भूमि (उज्जड़ खेड़े के पास) में आकर आवासित हो गए। संभवतः यह काल तेरहवीं सदी का मालूम पड़ता है। क्योंकि उसी समय विक्रमी सम्वत् 1216 वैशाख सुदी दूज दिन सोमवार को ढ़ाण्डा गोत्रीय जमने का पुत्र गनियर भी धनोरी गांव से चलकर यहां आ बसा था ।
वराह जी के नाम पर ही इस गांव का नाम वराह कलां रखा गया। इस स्थान पर जाटों के वंश में वृद्धि न होने के कारण ब्राह्मणों के परामर्श व कथनानुसार गनियर व उसके वंशजों ने उत्तर दिशा में अपनी जमीन में अलग से गांव बसा लिया । जिसका नाम सुन्दरपुर रखा गया। इस समय वराह कलां गांव में कोई भी जाट परिवार आबाद नहीं है ।